बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य
मनुष्य का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों से
होकर गुजरता है । उसकी नवजात शिशु अवस्था से लेकर विद्यार्थी जीवन, फिर गृहस्थ जीवन तत्पश्चात् मृत्यु तक वह अनेक प्रकार के
अनुभवों से गुजरता है । इस जीवन में हर किसी व्यक्ति को
एक जीवन साथी या मित्र की आवश्यकता होती है जो उससे हमेशा प्यार करें
और जीवन भर उसकी मदद करें। परंतु जीवन में एक बात तो सत्य है हर किसी प्रेम की
तुलना में माता पिता का प्रेम सबसे ऊपर होता है। एक पिता के सहज और निर्मल प्रेम को
किसी भी अन्य प्रेम से तुलना नहीं किया जा सकता है। अपने
जीवन में वह अनेक प्रकार के कार्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है । परंतु
अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य व उत्तरदायित्वों को वह जीवन पर्यत नहीं चुका सकता
है । माता-पिता से संतान को जो कुछ भी प्राप्त होता है वह अमूल्य है । माँ की ममता
व स्नेह तथा पिता का अनुशासन किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे
प्रमुख भूमिका रखते हैं ।
माता-पिता वह होते हैं जो
अपनी संतान की खुशी के लिए हर दुख हंसते-हंसते सह जाते हैं। मां वह होती है जो 9 महीने तक अपनी संतान को पेट में
रखकर हर दुख कष्ट को सहते हुए जन्म देती है। चाहे बच्चे जितनी भी बुरी हरकते करें
कभी भी माता-पिता के मन में उनके प्रति घृणा की भावना उत्पन्न नहीं होती है। अगर बच्चों का तबीयत खराब हो जाए तो माता-पिता से ज्यादा चिंतित और दुनिया में कोई नहीं होता है। दूसरी ओर पिता और माता रात दिन परिश्रम
करते हैं ताकि उनके बच्चे का भविष्य उज्ज्वल हो सके। वह अपने काम के साथ-साथ बच्चों के साथ खेलते हैं उन्हें स्कूल छोड़ने जाते हैं और साथ ही उनका ख्याल भी रखते हैं।
माता-पिता बिना किसी मोह माया के अपने बच्चो की परवरिश करते हैं ऐसे में हर
एक संतान का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता पिता की जीवन भर सेवा करें। माता-पिता
की सेवा और देखभाल करने वाला व्यक्ति हमेशा जीवन में सफल होता है।
किसी भी
मनुष्य को उसके जन्म से लेकर उसे अपने पैरों तक खड़ा करने में माता-पिता को किन-किन
कठिनाइयों से होकर गुजरना पड़ता है इसका वास्तविक अनुमान संभवत: स्वयं माता या पिता
बनने के उपरांत ही लगाया जा सकता है । हिंदू शास्त्रों व वेदों के अनुसार मनुष्य
को 84 लाख योनियो के पश्चात् मानव शरीर
प्राप्त होता है । इस दृष्टि से माता-पिता सदैव पूजनीय होते हैं जिनके कारण हमें
यह दुर्लभ मानव शरीर की प्राप्ति हुई. रामायण में भगवान् श्री राम के माता-पिता की सेवा को कोई भूल नहीं सकता है।
परन्तु अगर इस आधुनिक युग में अगर कोई व्यक्ति अपने माता-पिता की सेवा ही करे तो
बहुत है। अब एक ऐसा समय आ चूका है कि लोग पैसे और सफलता के पीछे ही भाग रहे हैं और माता-पिता को भूलते
जा रहे हैं। कुछ ऐसे क्रूर संतान भी हैं जो माता-पिता को वृद्ध हो जाने पर
वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं। लानत है ऐसे बच्चों को जो अपने माता-पिता के अंतिम समय में उन्हें छोड़ देते हैं। क्या इसी दिन के लिए वो माता-पिता
अपनी जान न्योछावर करके उस संतान का लालन पालन करते हैं।
हमारे लिए जिन कष्टों का सामना
हमारे माता पिता करते हैं उसका वर्णन करना नामुमकिन है। इसीलिए माता-पिता की सेवा
से भागना पाप है। माता पिता की सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती है। जिस संतान को
माता-पिता की सेवा का अवसर मिले, तो समझ लीजिये वह बहुत भाग्यशाली
है। हर माता-पिता के मन में एक चाह होती है कि उनकी संतान वृद्धावस्था में उनका
सहारा बने। जो लोग स्वयं के माता-पिता की सेवा नहीं करते हैं उनके बच्चे भी उनके
साथ वैसा ही व्यवहार दिखाते हैं।
हमें स्वयं अपने माता-पिता का
सम्मान करना चाहिए इससे हमारी आने वाली पीढ़ी के बच्चे भी वही सब सीखेंगे। कई बार
देखने में आता है कुछ अशिक्षित माता-पिता को उनके शिक्षित संतान संभालने और ख्याल रखने से
कतराते हैं। भले ही माता-पिता जितने पुराने ढंग के रहने वाले हों वो हमारे माता
पिता होते हैं और उन्हीं के कारण हम उस सफलता की जगह पर होते हैं। झूठे नकारात्मक लोगों की बातों को सुनके जो अपने माता-पिता की सेवा
नहीं करता है और उनका अपमान करता है उसे कभी भी जीवन में सुख-शांति प्राप्त नहीं
होती है।
हमारी अनेक गलतियों व अपराधों को वे
कष्ट सहते हुए भी क्षमा करते हैं और सदैव हमारे हितों को ध्यान में रखते हुए सद्मार्ग
पर चलने हेतु प्रेरित करते हैं । पिता का अनुशासन हमें कुसंगति के मार्ग पर चलने
से रोकता है एवं सदैव विकास व प्रगति के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है ।
यदि कोई डॉक्टर, इंजीनियर व उच्च पदों पर आसीन होता है तो उसके पीछे उसके
माता-पिता का त्याग, बलिदान व उनकी प्रेरणा की शक्ति निहित
होती है । यदि प्रांरभ से ही माता-पिता से उसे सही सीख व प्ररेणा नहीं मिली होती
तो संभवत: समाज में उसे वह प्रतिष्ठा व सम्मान प्राप्त नहीं होता ।
अत: हम जीवन पथ पर चाहे किसी भी ऊँचाई
पर पहुँचें हमें कभी भी अपने माता-पिता के सहयोग, उनके
त्याग और बलिदान को नहीं भूलना चाहिए । हमारी खुशियों व उन्नति के पीछे हमारे
माता-पिता की अनगिनत खुशियों का परित्याग निहित होता है । अत: हमारा यह परम
दायित्व बनता है कि हम उन्हें पूर्ण सम्मान प्रदान करें और जहाँ तक संभव हो सके
खुशियाँ प्रदान करने की चेष्टा करें।
माता-पिता की सदैव यही हार्दिक इच्छा
होती है कि पुत्र बड़ा होकर उनके नाम को गौरवान्वित करे । अत: हम सबका उनके प्रति
यह दायित्व बनता है कि हम अपनी लगन, मेहनत
और परिश्रम के द्वारा उच्चकोटि का कार्य करें जिससे हमारे माता-पिता का नाम
गौरवान्वित हो । हम सदैव यह ध्यान रखें कि हमसे ऐसा कोई भी गलत कार्य न हो जिससे
उन्हें लोगों के सम्मुख शर्मिंदा होना पड़े ।
आज की भौतिकवादी पीढ़ी में विवाहोपरांत
युवक अपने निजी स्वार्थों में इतना लिप्त हो जाते हैं कि वे अपने बूढ़े माता-पिता
की सेवा तो दूर अपितु उनकी उपेक्षा करना प्रारंभ कर देते हैं । यह निस्संदेह एक
निंदनीय कृत्य है । उनके कर्मों व संस्कार का प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ता है । यही
कारण है कि समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है । टूटते घर-परिवार व समाज
सब इसी अलगाववादी दृष्टिकोण के दुष्परिणाम हैं ।
अत: जीपन पर्यंत मनुष्य को अपने
माता-पिता के प्रति कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना चाहिए । माता-पिता
की सेवा सच्ची सेवा है । उनकी सेवा से बढ़कर दूसरा कोई पुण्य कार्य नहीं है । हमारे
वैदिक ग्रंथों में इन्हीं कारणों से माता को देवी के समकक्ष माना गया है ।
माता-पिता की सेवा द्वारा प्राप्त उनके
आशीर्वाद से मनुष्य जो आत्म संतुष्टि प्राप्त करता है वह समस्त भौतिक सुखों से भी
श्रेष्ठ है । ”मातृदेवो भव, पितृदेवो भव” वाली
वैदिक अवधारणा को एक बार फिर से प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है ताकि हमारे देश का
गौरव अक्षुण्ण बना रहे ।
Comments
Post a Comment