रेलवे में अवार्ड सिस्टम
ये जो रेलवे में अवार्ड सिस्टम है न, ऐसा लगता है कि दिन व दिन इसकी प्रासंगकिता कम होते जा रही है. एक तरफ रेलवे, फील्ड स्टाफ से जी तोड़ मेहनत करवाती है और अवार्ड के नाम पर दो चार गिने-चुने चमचो को ही दे दिया जाता है. आपने देखा होगा जो ट्रैकमैन फील्ड में काम करते है, उनसे ज्यादा अवार्ड जो ट्रैकमैन ऑफिस में चाय पिलाते है उनको दिया जाता है. और ज्यादातर देखा जाता है की अपने नीचे वाले का हक़ मारकर खुद को ही नॉमिनेट करवा लेते है और अवार्ड पर कब्ज़ा कर लेते है। ये साहब अपने नीचे के कर्मचारियों से खूब मेहनत करवाते है और सारी मलाई खुद खाना पसंद करते है। कई स्टाफ अपनी पूरी जिंदगी में एक भी अवार्ड नहीं ले पाते है, इसका ये कतई मतलब नहीं है की वो काम ढंग से नहीं करते है, सिस्टम ही कुछ ऐसा है. लेकिन जरा सी चूक हुइ नहीं की चार्जशीट में कोई देरी नहीं होती। अवार्ड के मामले में ये गुमनाम स्टाफ, चार्जशीट के टाइम में स्टार बना दिए जाते है।
अगर फील्ड स्टाफ को ज्यादा से ज्यादा अवार्ड दिया जाय तो रिजल्ट और भी अच्छा देखने को मिल सकता है. हमारे चेयरमैन साहब के अथक प्रयासो के बावजूद अभी भी बहुत कुछ फील्ड स्टाफ के लिए करना जरुरी है. हमें फील्ड स्टाफ के बिच में निराशा का भाव पैदा नहीं होने देना चाहिए। इनके मनोबल को ऊँचा कर के ही हम अपनी रेलवे को एक नयी ऊंचाई प्रदान कर सकते है. ऑफिस में बैठे सभी अधिकारियो और कर्मचारियों को फील्ड स्टाफ के प्रति अपनी सोच बदलनी चाहिए.
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हमें कर्त्वयनिष्ठा और कठिन मेहनत, फील्ड स्टाफ से सीखनी ही चाहिए। कैसी भी परिस्थिति हो, कैसा भी माहौल हो, कितनी भी निराशा हो, ये अपने कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करते है। आइये हम सब मिलकर इन्हे दिल से कहें - "हमें आप पर गर्व है।"
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Nice, this is fact.
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